भारतीय मूर्तिकला | मौर्यकालीन मूर्तिकला | शुंग सातवाहन काल |
मौर्य युग के दौरान, सम्राटों द्वारा प्रदान किए गए संरक्षण, विदेशी प्रभाव का प्रवाह, और बढ़ती भौतिक समृद्धि ने मूर्तिकला की कला को पुनर्जीवित किया
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Scarlett HillFebruary 19, 2024
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- प्राचीन काल से भारतीयों द्वारा मूर्तिकला की कला का अभ्यास किया गया था। भारतीय मूर्तिकला के सबसे प्राचीन नमूने सिंधु घाटी सभ्यता के स्थलों पर पाए गए मुहरों,मूर्तियां, बर्तनों में हैं। उसके बाद हमें मौर्यों के काल तक भारतीय मूर्तिकला के कोई नमूने नहीं मिले। इसका मतलब यह नहीं है कि इस लम्बे काल के दौरान कला मृत रही। इस अवधि के दौरान भी यह किसी न किसी रूप में अस्तित्व में थी।
- मौर्य युग के दौरान, सम्राटों द्वारा प्रदान किए गए संरक्षण, विदेशी प्रभाव का प्रवाह, और बढ़ती भौतिक समृद्धि ने मूर्तिकला की कला को पुनर्जीवित किया।
- अशोक के पत्थर के स्तंभों पर पशु-आकृतियां अब तक मौजूद हैं और उन्हें कला के सुंदर कार्यों के रूप में माना जाता है। सारनाथ स्तंभ के प्रसिद्ध शेर और रामपुरवा स्तंभ के सुंदर बैल प्रतिभाशाली मूर्तिकारों की कृतियाँ हैं।
- दीदारगंज में एक यक्ष की एक सुंदर आकृति मिली है, लेकिन यह मौर्य काल के बाद की है।
- विभिन्न स्थानों पर यक्षों के कई आंकड़े भी मिले हैं। वे मजबूत, भारी, बुल-नेक्ड और उनमें से कुछ जीवन-आकार से भी बड़े हैं। हालांकि सही नहीं है, उन्हें ठीक नमूनों के रूप में माना जाता है और जब हड़प्पा की मुहर-आंकड़ों के साथ तुलना की जाती है, तो वे मूर्तिकला में एक प्राचीन परंपरा के अस्तित्व को प्रदर्शित करते हैं।
1. मौर्यकालकालीन पूर्व कला अवशेष :-
गिरिव्रज के अवशेष
- गिरिव्रज के अवशेष - महाभारत काल में यह व्रहद्रथ की एक राजधानी हुआ करती थी जो पहाड़ियों घिरी हुई एक विशेष जगह थी।
- इस राजधानी की सुरक्षा के लिए व्रहद्रथ ने गिरिव्रज के चारों ओर 12-13 फीट ऊँची और 17 फीट तक मोटी पत्थरों के विशाल टुकड़ों का उपयोग करके एक दीवार बनवाई।
- उस दीवार के कुछ अवशेष हैं जिन्हें हम आज भी देख सकते हैं।
- इस दीवार को साईक्लोपियन वॉल के नाम से जानी जाती हैं।
घोषितराम विहार
- घोषितराम विहार - कौशाम्बी में उत्खनन से हमे मौर्यकाल से पहले के घोषितराम बोद्ध विहार के अवशेष प्राप्त होते हैं।
- इसका निर्माण मौर्यकाल से पूर्व गौतम बुद्ध के आवास के लिए करवाया गया था। इसका निर्माण घोषितराम नाम के एक व्यापारि ने करवाया था।
- इस विहार का निर्माण 5 वी. शताब्दी में हुआ था।
- 6 शताब्दी ईसा. पूर्व. में तोरमण शासक हूण ने इसे नष्ट कर दिया था।
- 3 शताब्दी ईसा पूर्व में अशोक के समय इस स्तुप के निर्माण में वृद्धि की गई थी। (पुनर्निर्माण)
- इस विहार से मोहर मिली है जिस पर लिखा है - कौशाम्बया घोषितराम महाविहारे भिक्षुसंघस्य।
- शतदल कमल की आकृति का एक दीपक भी प्राप्त हुआ है।
लोरिया नन्दनगढ़ का श्मशान चैत्य
- लोरिया नन्दनगढ़ का श्मशान चैत्य - बिहार के चंपारण में श्मशान चैत्य के अवशेष ओर अशोक का शिला स्तंम्भ मिला है।
- यहाँ से एक स्वर्ण पात्र पर अंकित नग्न मातृदेवी की आकृति मिली है। इस प्रकार के श्मसान चेतयो का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।
श्री चक्र
- श्री चक्र - उत्तरी भारत में कौशाम्बी, पाटलिपुत्र, मथुरा आदि विभिन्न स्थानों से पत्थर की बनी हुई गोल चक्रियां मिली है। जिन पर नग्न मातृदेवी की आकृतियां अंकित है। साथ में पशु तथा ताड़ वृक्षों का भी अंकन किया गया है। ज्यामितीय डिजाइन में अलंकृत की गई है। इन्ही को श्री चक्र पुकारा जाता है।
पिपरवा का स्तुप
- पिपरवा का स्तुप - यह स्तुप उत्तरप्रदेश के बस्सी जिले में पिपरवा नामक स्थान से मिला है।
- 1897 - 1998 में डॉ. डब्लू पेम्पे ने सर्वप्रथम इस स्तुप का उत्खनन करवाया था, यहां से पत्थर से बनी पेटी जिसमें बहुमुल्य पत्थरों तथा सोने से बनी वस्तुएं मिली।
- एक ढक्कनदार अस्थि रखने का कलश जिस पर ब्राह्मी लिपि में लेख लिखा गया है। (कुछ विद्वान इस पात्र हैं स्वंय बुद्ध की अस्थियां बताते हैं व कुछ विद्वान उनके परिजनों की अस्थियां बताते हैं)
- Note - भारत में ब्रह्मणि लिपी का विकास पिपरवा स्तुप से माना जाता है।।
2. मौर्यकालीन कला ( 323 - 184 ई. पूर्व.)
- मौर्य वंश की स्थापना चन्द्रगुप्त मौर्य ने विष्णुगुप्त/कौटिल्य के सहयोग से नन्द वंश के अंतिम शासक घनानंद की हत्या कर की। इनकी सर्वप्रथम राजधानी पाटलिपुत्र (बिहार) थी।
- चन्द्रगुप्त मौर्य ने विशाल राजप्रासाद एवं सभा भवन जो लकड़ी का बना हुआ था, का निर्माण करवाया था।
- चंद्रगुप्त मौर्य ने सिंधु नदी के पार आक्रमण में यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर को हराया, जिसके बाद 303 ईसा पूर्व में दोनों के बीच एक संधि पर हस्ताक्षर किए गए।
- और सेल्यूकस निकेटर ने अपनी बेटी हेलेन का विवाह चंद्रगुप्त मौर्य से कर दिया, विदेशी राजदूत मेगस्थनीज को चंद्रगुप्त के दरबार में भेजा।
- मेगस्थनीज ने इंडिका ग्रँथ की रचना की। जिसमें मौर्य शाही प्रशासन के बारे में विवरण मिलता है।
- चन्द्रगुप्त को मेगस्थनीज सेन्ड्राकोट्स नाम से पुकारता था।
- रुद्रदामन के जूनागढ़ शिलालेख में, चन्द्रगुप्त मौर्य का नाम एन्ड्रोकोट्स लिखा हुआ है।
- चन्द्रगुप्त मौर्य जैन धर्म के अनुयायी थे। उन्होंने भद्रबाहु से जैन धर्म की दीक्षा ली। अपने जीवन के अंतिम समय में श्रवणबेलगोला चले गए और वहां चंद्रगिरि पर्वत (कर्नाटक) पर संलेखना विधि से उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।
- बिन्दुसार (298 से 273 ई.पू.)(चन्द्रगुप्त का पुत्र) शासक बना।
- यूनानियों ने बिन्दुसार को अमित्रघात/अमित्रचेतस कहा था। (शत्रु का नाश करने वाला)
- सम्राट अशोक (273 - 223 ईसा पूर्व)(बिन्दुसार का पुत्र) शासक बना।
- अशोक बौद्घ धर्म के अनुयायी थे, इन्होंने बौद्घ धर्म के प्रचार प्रसार के लिए प्रस्तर( लाल चुनार) का प्रयोग किया, जगह-जगह पत्थर के स्तंभों पर लेख खुदवाए थे।
- अशोक ने धर्म निधि को स्थाई करने के लिए शिला फलक व स्तंभों पर इसको लिखवाया था, ताकि वहां से गुजरने वाले सभी लोग शिक्षा ग्रहण कर सके।
- सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को धर्म का प्रचार करने के लिए श्रीलंका भेजा।
- उनके माध्यम से श्रीलंका के राजा देवानामपिया तिस्सा ने बौद्ध धर्म अपनाया और वहां 'महाविहार' नामक बौद्ध मठ की स्थापना की।
- मौर्य काल में मुख्यतः राजप्रासाद, स्तूप, चैत्य, विहार गुफाएँ आदि का निर्माण हुआ।
- मौर्यकाल में लोककला के रूप में अनेकों मृण मूर्तियां, यक्ष-यक्षिणी की मूर्तियों का निर्माण किया।
- मौर्यकालीन कला की एक महत्वपूर्ण कृति 'मौली का हाथी' हैं। जिसमें चट्टान को काटकर हाथी बनाया गया है।
मौर्यकाल की जानकारी के स्त्रोत
- कौटिल्य का अर्थशास्त्र
- मेगस्थनीज की इंडिका
- चन्द्रगुप्त का राजप्रसाद
- अशोक के शिलास्तम्भ
- बाराबर व नागर्जुन की पहाड़ियां
- साँची व भरहुत स्तुप आदि।
बराबर व नागार्जुन की पहाड़ियां
- इन पहाड़ियों में सम्राट अशोक व उनके पोत्र दशरथ ने आजीविक सम्प्रदाय के बोद्ध भिक्षुओं के लिए गुफाओं का निर्माण करवाया था। (बिहार गया के निकट)
- (यहां से मिले गुहा लेखों से यह जानकारी मिलती हैं)
- बराबर की पहाड़ियों में 2 गुफाओ में हमे मौर्यकालीन मूर्तिकला के उत्कृष्ट नमूने मिलते है। 1. सुदामा गुफा, 2. लोमस ऋषि गुफा। ( पर्णशालाओं की शैली )
- लोमश ऋषि गुफा के प्रवेश द्वार पर उत्कीर्ण दोनों और पंखों पर तिरछे खड़े दो स्तम्भों पर मेहरबान बनाये गये है।
- नागार्जुन की पहाड़ी में गोपी गुफा का निर्माण सम्राट अशोक के पौत्र दशरथ की आज्ञा से हुआ था। यह गुफा विशाल व उत्कर्षट है , इसकी भीतरी दीवार पर मौर्यकालीन ओपदार पॉलिश चढ़ी हुई है।
ईंटो से निर्मित बौद्ध स्तूप -
- साँची
- भरहुत
- तक्षशिला का धर्मराजिका स्तूप
- इनका आकार 16 × 10 × 3 था।
- स्तुप मरे हुए व्यक्ति के अवशेषों के ऊपर जो चबूतरा बनाया जाता हैं।
- उसे स्तुप, समाधि, थुहा भी कहते हैं।
- पहली बार गौतम बुद्ध की अस्थियों को 8 भागों में बांटकर 8 स्थानों पर स्तूपों का निर्माण कराया गया।
- बाद में मौर्य शासक सम्राट अशोक ने सभी हड्डियों को एकत्र किया और पूरे भारत में लगभग 84,000 स्तूप बनवाये।
- जिसमें हमें खंडहर के रूप में कुछ स्तूपों के अवशेष मिलते हैं।
अशोक कालीन शिला स्तंम्भ
- अरमाइका लिपी
- खरोष्ठी लिपी
- यूनानी लिपी
- ब्रह्मा लिपी
- श्रावस्ती के जैनमत विहार के सामने दो स्तम्भ
- संकिसा विहार में
- लोरियानंदनगढ़
- जम्बूद्वीप
- निगलिवा
- स्तंम्भ
- अशोक के लाट
- परगाह
- लाट
अशोककालीन प्रमुख स्तंम्भ
- सारनाथ स्तंभ - इस स्तंभ के शीर्ष पर चार शेर की आकृतियाँ हैं जो एक-दूसरे की ओर पीठ करके उकड़ू स्थिति में बैठे हैं।
- साँची स्तंभ - इसमें चार शेरों की आकृतियाँ और दाना चुगते हंस की आकृति भी है।
- रामपुरवा स्तंम्भ - यह स्तम्भ बिहार के चंपारण जिले में स्थित हैं। तथा इस पर बैल (वृषभ) की आकृति बनी हुई है।राष्ट्रपति भवन नई दिल्ली। ( 3 शताब्दी )
- लोरियानन्दनगढ़ - इस पर सिंह की आकृति खुदी हुई है। पश्चिम में बिहार के चंपारण में स्थित है। लीगालिवा/निगालिवा - ये स्तंभ नेपाल के निगाली सागर में स्थित हैं।
- इलाहाबाद स्तंम्भ - यह स्तम्भ पहले कौशाम्बी में स्थित था , इसे रानी का स्तम्भ के नाम से जाना जाता था। बाद में इसे अकबर ने कौशाम्बी से इलाहाबाद में स्थापित किया था।
- लोरियाअरराज - बिहार के चंपारण जिले में पूर्व में स्थित हैं।
- रूढिया गांव स्तंभ - ये स्तंभ भी चंपारण बिहार में स्थित हैं।
- रूमबिंनदेई - यह स्तम्भ नेपाल में स्थित हैं इस स्तंम्भ के शीर्ष पर अश्व की आकृति स्थित हैं।
- बखिरा स्तंभ- इसे कोल्हवा स्तंभ के नाम से भी जाना जाता है। इस पर सिंह की आकृति बनी हुई है।
- टॉपर - यह स्तम्भ हरियाणा के अम्बाला जिले में स्थित था, बाद में फिरोजशाह तुगलक ने इसे कोटला में स्थापित करवाया। वर्तमान में दिल्ली में स्थित हैं।
- दिल्ली टॉपर - यह सन 1356 में सुल्तान फिरोजशाह तुगलक ने मेरठ से मंगवाया था वर्तमान में दिल्ली के उत्तर पश्चिम में स्थित हैं।
- संकिसा स्तंभ - इस पर गज (हाथी) की आकृति बनी हुई है।
सारनाथ स्तंम्भ
- हाथी - पूर्व दिशा का प्रतीक माना गया है।
- बैल - पश्चिम दिशा का प्रतीक माना गया है।
- सिंह - उत्तर दिशा का प्रतीक माना गया है।
- घोड़ा - दक्षिण दिशा का प्रतीक माना गया है।
- इन चारों पशुओं के बीच में एक चक्र बना हुआ है जो सम्राट का भाव प्रदर्शित करता है ।
- इसमे सबसे ऊपर में चार सिंह आकृति उकड़ू आपस में पीठ सटाकर बैठे हैं। पास में एक चक्र बना हुआ है जिसमें 32 आरे बने हुए थे। यह चक्र प्राकृतिक दुर्घटना से के कारण ध्वस्त हो गया था।
- इस पर बनी हुई पशुओं की आकृति का सही क्रम - हाथी, बैल, घोड़ा, सिंह ।
- इस स्तंम्भ की ऊंचाई 50 फिट थी।
- यहां से प्राप्त स्तंम्भ शीर्ष सारनाथ पुरातात्विक संग्रहालय उत्तप्रदेश में स्थित हैं।
मौर्यकालीन कलाकृतियां
तथा यह हाथी बुध का प्रतीक माना गया है। (उत्तरप्रदेश के देहरादून )
शुंग सातवाहन काल
- भरहुत
- कानपुर
- कौशाम्बी
- अमरावती
- आनंदकुमार स्वामी
- रायकृष्णदास
- कनिघम
- कोई नहीं
- हेरीघम
- कनिघम
- रायकृष्णदास
- ग्रिफिथ महोदय