राजस्थान की कला एवं संस्कृति - राजस्थान के प्रमुख वाद्य यंत्र (बंकिया वाद्ययंत्र)
बांकिया एक वायु वाद्य यंत्र जो कांसे से बना हुआ है।यह एक तुरही के आकार का संगीत वाद्ययंत्र है। राजस्थान में पाया जाने वाला एक धार्मिक वाद्ययंत्र है (rajasthan ke pramukh vadya yantra) जिसका उपयोग सामाजिक समारोहों और जुलूसों में किया जाता है।
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Scarlett HillFebruary 22, 2024
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बांकिया एक पारंपरिक वायु वाद्य उपकरण है जो पीतल से बना होता है, जो भारत के राजस्थान में पाया जाता है। यह तुरही की तरह की होती है और धार्मिक संगीत के रूप में सामाजिक समारोहों और जुलूसों में आमतौर पर प्रयोग की जाती है।
निर्माण और प्रयोग: बांकिया कैसे बनाया जाता है ?
बांकिया एक प्रकार का ध्वनि वाद्य यंत्र होता है जो काँसा Material (पीतल) से बनती है और यह दो हिस्सों में बनती है। एक काँसे की तुरही है और दूसरा बिगुल की तरह एक नली और एक तश्तरी के आकार की घंटी (संकलित मुखनाल सहित) है।
यह ध्वनि वाद्य यंत्र बिगुल की जैसी आकृति का होता है और तुरही का एक प्रकार माना जाता है।
बांकिया के निर्माण में निम्नलिखित चरण होते हैं:
- धातु का चयन: पहले धातु का चयन किया जाता है, जिसमें आमतौर पर पीतल का उपयोग किया जाता है।
- आकार निर्धारण: फिर यंत्र के आकार को निर्धारित किया जाता है, जो बिगुल की तरह होता है।
- बनावट: यंत्र के लिए मोल्ड तैयार किया जाता है, और फिर पीतल या अन्य धातु का गरम किया हुआ मिश्रण मोल्ड में डाला जाता है।
- कटाई और संधारण: एक बार यंत्र का सामान्य आकार तैयार होने के बाद, उसे कटा और संधारित किया जाता है ताकि यंत्र का सही ढंग से काम कर सके।
- ध्वनि उत्पादन: अंत में, बांकिया का ट्यूनिंग किया जाता है, ताकि यंत्र सही ध्वनि उत्पन्न कर सके।
इसके बाद, बांकिया को आवाज के साथ ढोल और काँसे की थाली के साथ उपयोग में लाया जाता है, विशेषकर राजस्थान के मांगलिक अवसरों, शोभायात्राओं, सामाजिक समारोहों पर।
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➯ सुषिर वाद्य यंत्र वे वाद्य यंत्र होते हैं जिन्हें फुंक मारकर बजाया जाता है। इन वाद्य यंत्रों को हवा के धाराओं के द्वारा बजाने के लिए उपयोग किया जाता है। इस तरह के वाद्य यंत्रों का उपयोग विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक, और धार्मिक आयोजनों में किया जाता है। कुछ प्रमुख सुषिर वाद्य यंत्रों में शहनाई, बांसुरी, पूंगी, और तुरही शामिल होते हैं।
👉 राजस्थान के प्रमुख सुषिर वाद्य यंत्र कौन कौन से हैं ?
राजस्थान के प्रमुख वाद्य यंत्र | Rajasthan ke pramukh vadya yantra | राजस्थान के वाद्य यंत्र
1. शहनाई
2. अलगोजा
3. बांसुरी
4. पूंगी (बीन/ बीण)
5. मशक
6. बांकिया
7. भूंगल या रणभेरी
8. मोरचंग
9. सतारा
10. नड़
11. तुरही
12. नागफणी
13. मुरली
14. सिंगा
15. सिंगी
16. सुरणाई / सुरनाई / सुरणई / नफीरी
17. पावरी व तारपी
18. शंख
19. हरनाई
सुषिर वाद्य यंत्र के चित्र
1. बांकिया
➯ बांकिया काँसा Material (पीतल) धातु से निर्मित वाद्य यंत्र है।
➯ बाकिया बिगुल की जैसी आकृति का होता है। इसे तुरही का एक प्रकार माना जा सकता है। जोश, जूनून और जज़्बे को उजागर करता बाँकिया वाद्य प्राचीन समय में युद्ध के समय बजाया जाता था।
➯ बांकिया सरगड़ों का खानदानी वाद्य यंत्र माना जाता है। जिसे मारवाड़ क्षेत्र में मांगलिक अवसरों में सरगड़ा जाति के लोग बजाते है |
➯ बांकिया वाद्य यंत्र को कांसे की थाली व ढोल के साथ बजाया जाता है।
➯ बांकिया वाद्य यंत्र को धार्मिंक और शुभ मांगलिक अवसरों पर भी बजाया जाता है।
2. अलगोजा
➯ अलगोजा में चार छेदों वाली दो बांसुरीयां होती है।इसमें चार छेद होते हैं, जिन्हें वादकों द्वारा उच्च और निम्न स्वरों के लिए बजाया जाता है।
➯ अलगोजा को राजस्थान के कोटा, बूंदी, अजमेर व अलवर जिलों के गुर्जर, मेव व धाकड़ जाति के लोगों के द्वारा बजाया जाता है।
➯ अलगोजा को आमतौर पर बाड़मेर के राणका फकीरों द्वारा भी बजाया जाता है।
➯ इसका प्रमुख उपयोग सामाजिक और सांस्कृतिक आयोजनों में किया जाता है, जैसे कि शादियों, त्योहारों और मेलों में।
3. बांसुरी
➯ बांसुरी बांस की खोखली लकड़ी से बनी होती है।
➯ बांसुरी में स्वरों के लिए 7 छेद बने होते है।
➯ बांसुरी के प्रमुख वादक हरिप्रसाद चौरसिया व पन्ना लाल घोष, पं. राजेंद्र प्रसाद सुरोदी, और रोनुक खेर है।
➯ यह वाद्य यंत्र प्राचीन काल से भारतीय संगीत में प्रमुख स्थान रखता है। बांसुरी के रूप में संगीतकारों द्वारा उन्नत और रमणीय संगीत की सृष्टि की जाती है।
➯ बांसुरी का निर्माण बांस के खोखले तने से किया जाता है। यह खोखले तने कट कर उन्हें उचित आकार में धकेलकर तैयार किया जाता है। फिर बांस के तने को ध्वनि को सुनने के लिए उत्तम आकार दिया जाता है और उसके मुख पर आकारित किया जाता है।
➯ बांसुरी को बजाने के लिए आमतौर पर मानव द्वारा उसके एक सिरे को ढकने वाले उपकरण का उपयोग किया जाता है, जिससे ध्वनि उत्पन्न होती है। इसके बाद, शिक्षार्थी या कलाकार द्वारा उसकी ध्वनि का सुंदर ताल, लय, और मेल का ध्वनि उत्पन्न किया जाता है।
4. पूंगी (बीन/बीण)
➯ पूंगी को छोटी आकार की लोकी के तुंबे से बनाई जाती है।
➯ पूंगी को मुख्यतः कालबेलिया जाति के लोग, सर्प पकड़ते समय और उत्सव व नृत्यों के दौरान विशेष रूप से बजाते है।
➯ पूंगी, जिसे अक्सर बीन या बीण भी कहा जाता है, एक प्रकार का वाद्य यंत्र है जो लोकल रूप से बनाया जाता है और भारतीय संगीत में उपयोग किया जाता है। इसे आमतौर पर सर्प या समकालीन नागिन ध्वनि के उत्पन्न करने के लिए उपयोग किया जाता है।
➯ पूंगी की ध्वनि उत्पन्न करने के लिए, वादक एक लंबी संधारित नली को आवाज़ के लिए धीमे और तेज ताल में फुंकता है, जिससे वाद्य यंत्र की ध्वनि पैदा होती है। इसमें लंबी संधारित नली, मुख्य ताले के साथ, एक छोटी संधारित नली होती है जिसे वादक के अंगुलियों द्वारा धमाका जाता है, इससे ध्वनि उत्पन्न होती है।
➯ पूंगी को अक्सर कालबेलिया जाति के लोगों द्वारा सर्प पकड़ते और लोक संगीत के प्रदर्शन के दौरान उपयोग किया जाता है। यह वाद्य यंत्र भारतीय संगीत के त्यौहारों और परंपरागत कार्यक्रमों में भी बजाया जाता है।
5. मशक क्या है ?
➯ मशक वाद्य यंत्र एक प्रकार का ध्वनि वाद्य यंत्र है जो चमड़े से निर्मित होता है।यह एक विशिष्ट प्रकार की खाल से बना होता है जिसमें हवा को बजाने के लिए एक छिद्र होता है।
➯ मशक वाद्य यंत्र को मुख्यतः विवाह, अतिथि सत्कार, और धार्मिक कार्यक्रमों और मांगलिक अवसरों पर बजाया जाता है।
➯ भेरुजी के भोपे मशक वाद्य यंत्र को विशेष रूप से बजाते है।
➯ श्रवण कुमार ने मशक वाद्य यंत्र को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलवायी है इसीलिए श्रवण कुमार को मशक का जादूगर कहते है।
➯ मशक का आवाज किसी भी ध्वनि यंत्र के साथ मिलाने के लिए उपयोग किया जाता है, जैसे कि ढोल, धोलक, और ढफ़ली। यह ध्वनि वाद्य यंत्र भारतीय संस्कृति में प्रमुख स्थान रखता है और अतिथि सत्कार हेतु व प्रतिष्ठान्वित अवसरों पर उपयोग में लाया जाता है।
6. शहनाई
➯ सुषिर वाद्य यंत्रों में शहनाई को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। शहनाई एक प्रकार का भारतीय शास्त्रीय संगीत का वाद्य यंत्र है, जो प्राचीन काल से ही उत्तर भारतीय संस्कृति में प्रचलित है। यह एक प्रकार की नाद वाद्य यंत्र है जिसे हवा की धारा के द्वारा बजाया जाता है।
➯ शहनाई को सुरीला व मांगलिक वाद्य यंत्र माना जाता है। शहनाई ध्वनि में गहराई और मेलोडिक गुणधर्म होते हैं, और इसे भारतीय संगीत में मान्यता प्राप्त सुरीला और मांगलिक वाद्य यंत्र के रूप में जाना जाता है। शहनाई ध्वनि में एक उच्च और गहरा स्वर सुनाई देता है जो सांस्कृतिक आयोजनों, धार्मिक उत्सवों, शादियों और अन्य सामाजिक अवसरों में नगाड़े के साथ उपयोग किया जाता है।
➯ शहनाई को बनाने के लिए शिशम या सांगवान की लकड़ी प्रयोग में ली जाती है।
➯ शहनाई का आकर(रूप) चिलम के सदृश्य होता है।
➯ शहनाई में कुल 8 छेद होते है।
➯ शहनाई का प्रमुख वादक बिस्मिल्लाह खां है।
➯ शहनाई को सुंदरी भी कहते है।
7. भूंगल या रणभेरी
➯ भूंगल वाद्य यंत्र को प्राचीन काल से ही युद्ध शुरू करने से पहले बजाया जाता था और विभिन्न समाजिक और सांस्कृतिक अवसरों पर भी बजाया जाता है।
➯ भूंगल मेवाड़ के भवाईयों का प्रमुख वाद्य यंत्र माना जाता है, और यह राजस्थान की संस्कृति और संस्कृति के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसे विशेष अवसरों पर बजाया जाता है, जैसे कि धार्मिक उत्सव और लोकार्पण समारोह।
➯ भूंगल बिगुल की भाति रण वाद्य यंत्र है और ध्वनि को उत्पन्न करने के लिए इसकी पीतल से बनी लम्बी व खोखली नली को फूंक मारकर बजाया जाता है।
8. मोरचंग क्या है ?
➯ मोरचंग एक छोटा लोहे का बना ध्वनि वाद्य यंत्र है जो भारतीय संगीत में प्रयोग किया जाता है। यह वाद्य यंत्र एक प्रकार की मुख वीणा होती है, जिसमें छोटे लोहे के कट्टे और रोमांचक ध्वनि उत्पन्न करने के लिए एक तार लगी होती है।
➯ मोरचंग को लंगा जाति के लोगों द्वारा प्रायः बजाया जाता है, और यह वाद्य यंत्र राजस्थान के पारंपरिक संगीत का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसका उपयोग विभिन्न समारोहों, धार्मिक प्रस्तुतियों और समाजिक आयोजनों में किया जाता है।
➯ मोरचंग का ध्वनि उत्पादन करने के लिए, बारीक छोटे लोहे के टुकड़ों को तन्त्रिक रूप से पकड़कर, उन्हें मस्तिष्कीय शक्ति के साथ छोड़ दिया जाता है, जिससे ध्वनि उत्पन्न होती है। इसके बाद, ध्वनि को नियंत्रित करने के लिए टुकड़ों को बारीक गति से हिलाया जाता है।
➯ मोरचंग एक प्रकार की रणभेरी भी है, जो कि राजस्थान के पारंपरिक संगीत में महत्वपूर्ण रोल निभाती है।
9. सतारा
➯ सतारा वाद्य यंत्र अलगोजा, बांसुरी व शहनाई का मिश्रण माना जाता है।
➯ सतारा वाद्य यंत्र को बजने वाले प्रायः जैसलमेर तथा बाड़मेर की जनजातियों मुख्यतः लंगा जाति के द्वारा किया जाता है।
➯ सतारा वाद्य यंत्र का उपयोग प्रमुखतः समाजिक और सांस्कृतिक आयोजनों में किया जाता है, जहां यह गायन की मध्यम ध्वनि उत्पन्न करता है और उन्हें संगीतीय प्रस्तुतियों में समर्थ बनाता है।
10. नड़
➯ नड़ एक प्रकार का स्थानीय ध्वनि वाद्य यंत्र है जो बैंत व कंगोर की लकड़ी से निर्मित होता है।
➯ नड़ वाद्य यंत्र का जैसलमेर जिले में सबसे ज्यादा प्रयोग में लिया जाता है। और भोपे जाति के लोग भैरव का गुणगान करने के लिये बजाते है
➯ नड़ वाद्य यंत्र सिंधी संस्कृति का पूर्ण प्रभाव माना जाता है। इसे धार्मिक प्रयोजनों के लिए उपयोग किया जाता है, विशेषकर भजनों और आरतियों के समय। नड़ को राजस्थानी संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है और इसे वहाँ की परम्परागत संगीत में एक महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है।
➯ राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के कर्णाभील नड़ वाद्य यंत्र के प्रमुख वादक माने जाते है।और कर्णाभील ने नड़ वाद्य यंत्र को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि दिलाई है।
➯ नड़ का आकार धनुषाकार होता है और इसमें एक छोटा लंबा संगीतकारी धागा या स्ट्रिंग लगा होता है, जिसे धनुष या कमान के रूप में जाना जाता है। धागा को खींचकर और ध्वनि उत्पन्न करने के लिए छोटे छोटे धागों को उचित स्थान पर छेदों में रखा जाता है।
11. तुरही
➯ तुरही वाद्य यंत्र को बनाने के लिए पीतल का प्रयोग किया जाता है।
➯ इसकी आकार बैंगलोर या बिना रुढ़कांत के ध्वनि यंत्रों की श्रृंगारिक आकृति के रूप में होती है। तुरही के बजने से पूरे क्षेत्र में ध्वनि फैलती है जो दुर्ग के अंदर बसे लोगों को संदेश पहुंचाने में मदद करती है। तथा युद्ध स्थलों पर भी उपयोग किया जाता है।
➯ यह भारतीय समाज और संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखती है और विभिन्न पर्वों और उत्सवों में उपयोग की जाती है।
12. नागफणी
➯ नागफणी वाद्य यंत्र को बनाने के लिए पीतल की सर्पाकार नली का प्रयोग किया जाता है।
➯ नागफणी को अक्सर मंदिरों व साधु सन्यासियों के द्वारा, हिंदू धार्मिक आयोजनों और पूजाओं में उपयोग किया जाता है, जैसे की कीर्तन, भजन आदि।➯ इसका ध्वनि अत्यंत मंद और प्रफुल्लित होता है, जो धार्मिक आयोजनों में एक अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
13. मुरली
➯ मुरली वाद्य यंत्र पूंगी का परिष्कृत रूप माना जाता है।इसका उपयोग भारतीय संगीत और संगीतिक प्रदर्शनों में किया जाता है। मुरली एक बांसुरी की तरह होती है, लेकिन इसमें कुछ विशेष विभिन्नताएँ होती हैं।
➯ मुरली वाद्य यंत्र को मुख्यतः बाड़मेर व जैसलमेर की लंगा जाति के द्वारा बजाया जाता है। इसे सामान्यतः मांगलिक अवसरों, विवाहों, और धार्मिक प्रतिष्ठाओं में उपयोग किया जाता है।
➯ ध्वनि क्षेत्र: मुरली में सात छेद होते हैं, जिनसे सात स्वरों की ध्वनि उत्पन्न होती है।
➯ मुरली एक प्रमुख रूप से राजस्थानी संस्कृति में महत्वपूर्ण ध्वनि वाद्य यंत्र है, जो उसके सांस्कृतिक और सामाजिक आयाम को अभिव्यक्त करता है।
14. सिंगा
➯ सिंगा वाद्य यंत्र धनुषाकार आकृति का पीतल धातु से निर्मित होता है।जो हिरण और बारहसिंगा के सिगों से बनाया जाता है।
➯ सिंगा वाद्य यंत्र को मुख्यतः साधु सन्यासियों जोगियों के द्वारा बजाया जाता है।
➯ यह राजस्थान की संस्कृति और लोक संगीत में एक प्रमुख स्थान रखता है। इसकी ध्वनि और आवाज़ धनुषाकार संरचना के कारण अनूठी होती है और इसे विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक आयोजनों में शामिल किया जाता है।
15. सिंगी
➯ सिंगी वाद्य यंत्र हिरण व बारहसिंगा के सिगों(सिंह के सिर की शृंग) से निर्मित होता है।
➯ सिंगी वाद्य यंत्र मुख्यतः जोगियों द्वारा बजाया जाता है। इसे गुजरात और राजस्थान के कई समुदायों में पसंद किया जाता है।
➯ इसे अक्सर धार्मिक और सामाजिक आयोजनों में भी प्रदर्शित किया जाता है। यह एक प्रतिभाशाली और अनूठा वाद्य यंत्र है जो भारतीय संगीत में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
16. सुरनाई / सुरणई / लफीरी
➯ सुरनाई वाद्य यंत्र सहनाई के जैसी आकृति का बना होता है। जो पीतल धातु से बनाया जाता है।
➯ सुरनाई वाद्य यंत्र को मांगलिक अवसरों पर ढोली जाति के द्वारा बजाया जाता है।
➯ पेपे खां सुरणई / सुरणाई के प्रमुख वादक है।
➯ सुरनाई को मुख्यतः बारातों, शादियों, और अन्य सामाजिक आयोजनों में उपयोग किया जाता है। यह ध्वनि वाद्य यंत्र भारतीय संगीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और उत्तर भारतीय राज्यों, खासकर पंजाब और हरियाणा में प्रसिद्ध है।
➯ सुरनाई को लफीरी या सुरणई भी कहा जाता है और यह प्राचीन संगीत परंपराओं में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इसकी ध्वनि बहुत मनोरंजनात्मक होती है और इसे विभिन्न समाजिक और धार्मिक आयोजनों में शामिल किया जाता है।
17. पावरी व तारपी
➯ मुख्यतः राजस्थान के उदयपुर जिले की कथौड़ी नामक जनजाति के द्वारा बजाया जाता है।
➯ पावरी और तारपी दो प्रकार के ध्वनि वाद्य यंत्र हैं जो भारतीय संगीत में प्रचलित हैं।
1. पावरी (Pungi):
➯ पावरी एक बिंबों का ध्वनि वाद्य यंत्र है जो विशेष रूप से काबिले और राजस्थान में प्रचलित है।
➯ इसे छोटी लोकी के तुंबे से बनाया जाता है और इसमें कई छिद्र होते हैं जो वाद्यक के द्वारा उच्च और निम्न स्वरों को उत्पन्न करते हैं।
➯ पावरी को कालबेलिया जाति के लोग बजाते हैं और यह विशेष रूप से सर्प पकड़ने और नृत्य के दौरान प्रयोग किया जाता है।
2. तारपी (Tarpi):
➯ तारपी भारतीय राज्य मध्य प्रदेश के खंडवा, खरगोन, निमाड़, रतलाम, बरवानी, और उज्जैन के क्षेत्र में प्रचलित है।
यह ध्वनि वाद्य यंत्र लोहे के बने धारणीय छिद्रों का होता है और इसके साथ एक तारा होता है जिसे बजाया जाता है।
➯ तारपी को विशेष अवसरों पर जैसे कि शादी और समारोहों में बजाया जाता है और इसे लोक गीतों और नृत्य के साथ संगीतीकरण के लिए उपयोग किया जाता है।