History of Indian Architecture and Sculpture(Part 2)भारतीय वास्तुकला और मूर्तिकला का इतिहास
मौर्यकालकालीन पूर्व कला अवशेष, मौर्यकालीन कला (mauryan art) ( 323 - 184 ई. पूर्व.), मौर्यकाल की जानकारी के स्त्रोत, अशोककालीन प्रमुख स्तंम्भ, सारनाथ स्तंम्भ
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Scarlett HillFebruary 16, 2024
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मौर्यकालीन मूर्तिकला (mauryan sculpture)
मौर्यकालकालीन पूर्व कला अवशेष
- गिरिव्रज के अवशेष - महाभारत काल में व्रहद्रथ की राजधानी थी जो पहाड़ियों घिरी हुई जगह थी।
- इस राजधानी की सुरक्षा के लिए व्रहद्रथ के द्वारा गिरिव्रज के चारों और बड़ी - बड़ी 12 - 13 फिट ऊंची और 17 फिट तक मोटाई में बड़े-बड़े पत्थरों के टुकड़ों से दीवार बनवाई गई।
- उस दीवार के कुछ अवशेष आज भी हमें देखने को मिलते है।
- इस दीवार को साईक्लोपियन वॉल के नाम से जानी जाती हैं।
- घोषितराम विहार - कौशाम्बी में उत्खनन से हमे मौर्यकाल से पहले के घोषितराम बोद्ध विहार के अवशेष प्राप्त होते हैं।
- इसका निर्माण मौर्यकाल से पूर्व गौतम बुद्ध के आवास के लिए करवाया गया था। इसका निर्माण घोषितराम नाम के एक व्यापारि ने करवाया था।
- इस विहार का निर्माण 5 वी. शताब्दी में हुआ था।
- इसका विनाश तोरमण शासक हूण ने 6 शताब्दी ईसा. पूर्व. में किया था।
- 3 शताब्दी ईसा पूर्व में अशोक के समय इस स्तुप के निर्माण में वृद्धि की गई थी। (पुनर्निर्माण)
- इस विहार से मोहर मिली है जिस पर लिखा है - कौशाम्बया घोषितराम महाविहारे भिक्षुसंघस्य।
- शतदल कमल की आकृति का एक दीपक भी प्राप्त हुआ है।
- लोरिया नन्दनगढ़ का श्मशान चैत्य - बिहार के चंपारण में श्मशान चैत्य के अवशेष ओर अशोक का शिला स्तंम्भ मिला है।
- यहाँ से एक स्वर्ण पात्र पर अंकित नग्न मातृदेवी की आकृति मिली है। इस प्रकार के श्मसान चेतयो का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।
- श्री चक्र - उत्तरी भारत में कौशाम्बी, पाटलिपुत्र, मथुरा आदि विभिन्न स्थानों से पत्थर की बनी हुई गोल चक्रियां मिली है। जिन पर नग्न मातृदेवी की आकृतियां अंकित है। साथ में पशु तथा ताड़ वृक्षों का भी अंकन किया गया है। ज्यामितीय डिजाइन में अलंकृत की गई है। इन्ही को श्री चक्र पुकारा जाता है।
- पिपरवा का स्तुप - यह स्तुप उत्तरप्रदेश के बस्सी जिले में पिपरवा नामक स्थान से मिला है।
- 1897 - 1998 में डॉ. डब्लू पेम्पे ने सर्वप्रथम इस स्तुप का उत्खनन करवाया था, यहां से पत्थर से बनी पेटी जिसमें बहुमुल्य पत्थरों तथा सोने से बनी वस्तुएं मिली।
- एक ढक्कनदार अस्थि रखने का कलश जिस पर ब्राह्मी लिपि में लेख लिखा गया है। (कुछ विद्वान इस पात्र हैं स्वंय बुद्ध की अस्थियां बताते हैं व कुछ विद्वान उनके परिजनों की अस्थियां बताते हैं)
- Note - भारत में ब्रह्मणि लिपी का विकास पिपरवा स्तुप से माना जाता है।
मौर्यकालीन कला (mauryan art) ( 323 - 184 ई. पूर्व.)
- मौर्य वंश की स्थापना चन्द्रगुप्त मौर्य ने विष्णुगुप्त/कौटिल्य के सहयोग से नन्द वंश के अंतिम शासक घनानंद की हत्या कर की। इनकी सर्वप्रथम राजधानी पाटलिपुत्र (बिहार) थी।
- चन्द्रगुप्त मौर्य ने विशाल राजप्रसाद व सभा भवन (लकड़ी से) का निर्माण करवाया था।
- चन्द्रगुप्त मौर्य ने यूनानी शासक सेल्युकस नीकेटर के साथ सिन्धु नदी पार आक्रमण में हराया, उसके बाद 303 ई. पु. दोनों के बीच में संधि हुई।
- और सेल्युकस नीकेटर ने अपनी पुत्री हैलना का विवाह चंद्रगुप्त मौर्य के साथ किया, चन्द्रगुप्त के दरबार में विदेशी राजदूत मेगस्थनीज को भेजा।
- मेगस्थनीज ने इंडिका ग्रँथ की रचना की। जिसमे मौर्य राज प्रसासन के बारे में विवरण मिलता है।
- चन्द्रगुप्त को मेगस्थनीज ने सेन्ड्रोकोट्स नाम से पुकारा था।
- रुद्रदामन के जूनागढ़ अभिलेख में चन्द्रगुप्त का नाम एंड्रोकोट्स लिखा गया है।
- चन्द्रगुप्त मौर्य जैन धर्म के अनुयायी थे। इन्होंने जैन धर्म की दीक्षा भद्रबाहु से ली थी। जीवन के अंतिम समय में श्रवणबेलगोला चले गए थे वहीं पर चन्द्रगिरि पर्वत(कर्नाटक) पर संलेखना पद्धति से अपने प्राण त्याग दिए थे।
- चन्द्रगुप्त के बाद उनके पुत्र बिंदुसार (298 से 273 ई. पु.) शासक बने थे।
- बिंदुसार को यूनानी ने अमित्रघात/अमित्रचेटस कहा। (शत्रु का नाश करने वाला)
- बिंदुसार के पुत्र सम्राट अशोक (273 - 223 ई. पु.) शासक बने।
- अशोक बौद्घ धर्म के अनुयायी थे, इन्होंने बौद्घ धर्म के प्रचार प्रसार के लिए प्रस्तर( लाल चुनार) का प्रयोग किया, जगह-जगह पत्थर के स्तंभों पर लेख खुदवाए थे।
- अशोक ने धर्म निधि को स्थाई करने के लिए शिला फलक व स्तंभों पर इसको लिखवाया था, ताकि वहां से गुजरने वाले सभी लोग शिक्षा ग्रहण कर सके।
- सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को धर्मप्रचार के लिए श्रीलंका भेजा।
- इनके द्वारा श्रीलंका के राजा देवनामपिया तीस्सा ने बौद्ध धर्म अपनाया और वहां 'महाविहार' नामक बौद्ध मठ की स्थापना की।
- मौर्यकाल में प्रमुख तौर पर राजप्रसाद, स्तुप, चैत्य, विहार गुफाए आदि का निर्माण हुआ था।
- मौर्यकाल में लोककला के रूप में अनेकों मृण मूर्तियां, यक्ष-यक्षिणी की मूर्तियों का निर्माण किया।
- मौर्यकालीन कला की एक महत्वपूर्ण कृति 'मौली का हाथी' हैं। जिसमें चट्टान को काटकर हाथी बनाया गया है।
मौर्यकाल की जानकारी के स्त्रोत
- कौटिल्य का अर्थशास्त्र, मेगस्थनीज की इंडिका, चन्द्रगुप्त का राजप्रसाद, अशोक के शिलास्तम्भ, बाराबर व नागर्जुन की पहाड़ियां, साँची व भरहुत स्तुप आदि।
- Note - चन्द्रगुप्त मौर्य के राजप्रसाद से तुलना मेगस्थनीज ने सीरिया देश के सुसा व एक बटना महलों से की।
- 5 वी. शताब्दी में गुप्त शासक चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के काल में फाह्यान भारत आया था। (चन्द्रगुप्त द्वितीय)
- चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा निर्मित राजप्रसाद व अलंकृत, बेल बुटो को देखकर व महान अशोक द्वारा निर्मित ओपदार पॉलिस को देखकर आश्चर्यचकित हो गए थे।】
- राजप्रसाद के अवशेष जो हमें देखने को मिलते हैं वे पाटलिपुत्र के उत्तर में स्थित बुलंदीबाग में देखने को मिलते हैं, यह प्रमाण अशोक द्वारा निर्मित महलों के है इसमें 80 स्तंभों से युक्त विशाल मंडप मिला है।
बराबर व नागार्जुन की पहाड़ियां -------------------
- इन पहाड़ियों में सम्राट अशोक व उनके पोत्र दशरथ ने आजीविक सम्प्रदाय के बोद्ध भिक्षुओं के लिए गुफाओं का निर्माण करवाया था। (बिहार गया के निकट)
- (यहां से मिले गुहा लेखों से यह जानकारी मिलती हैं)
- बराबर की पहाड़ियों में 2 गुफाओ में हमे मौर्यकालीन मूर्तिकला के उत्कृष्ट नमूने मिलते है। 1. सुदामा गुफा, 2. लोमस ऋषि गुफा। ( पर्णशालाओं की शैली )
- लोमश ऋषि गुफा के प्रवेश द्वार पर उत्कीर्ण दोनों और पंखों पर तिरछे खड़े दो स्तम्भों पर मेहराब बनाये गये है।
- नागार्जुन की पहाड़ी में गोपी गुफा का निर्माण सम्राट अशोक के पौत्र दशरथ की आज्ञा से हुआ था। यह गुफा विशाल व उत्कर्षट है , इसकी भीतरी दीवार पर मौर्यकालीन ओपदार पॉलिश चढ़ी हुई है।
ईंटो से निर्मित बौद्ध स्तूप --------------------------------
- साँची, भरहुत, तक्षशिला का धर्मराजिका स्तूप, इनका आकार 16 × 10 × 3 था।
- स्तूप मरे हुए व्यक्ति के अवशेषों के ऊपर जो चबूतरा बनाया जाता हैं।, उसे स्तूप समाधि, थुहा भी कहते हैं।
- सर्वप्रथम स्तूपों का निर्माण गौतम बुद्ध की अस्थियों को 8 भागों में विभाजित कर 8 स्थानों पर स्तूपों का निर्माण करवाया था।
- बाद में मौर्यकालीन शासक सम्राट अशोक ने सभी अस्थियों को इक्कट्ठा करवाकर सम्पूर्ण भारत में लगभग 84000 स्तूपों का निर्माण करवाया था। जिनमें कुछ स्तूपों के हमे खंडहर के रूप में अवशेष मिलते है।
- मौर्यकालीन प्रमुख स्तुप - साँची स्तुप, सारनाथ स्तुप, तक्षशिला का स्तुप आदि।
- मौर्यकाल में निर्मित स्तुप ईंटो का निर्माण करवाया गया बाद में ध्वस्त होने के कारण शुंगकाल में शुंग शासकों के द्वारा पत्थरों से करवाया गया था।
मौर्यकालीन उपलब्धि
राजप्रसाद - स्तुप - स्तंम्भ
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(लकड़ी से) (ईंटो से) (पत्थर से)
अशोक कालीन शिला स्तंम्भ
- अशोक के तेरहवें अभिलेख के अनुसार अशोक ने अपने राज्याभिषेक के 8 वे वर्ष में कलिंग का युद्ध लड़ा था। अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए। इस युद्ध के बाद अशोक ने विस्तार नीति का अंत किया और उसकी जगह धर्म नीति को अपना लिया ( अहिंसा, सत्य, प्रेम, दान, परोपकारी का रास्ता अपना लिया था) ।
- Note - कलिंग युद्ध का वर्णन 13 वे अभिलेख से मिलता है।
- अशोक ने बोद्ध धर्म के प्रचार प्रसार के लिए पत्थर के टुकड़ों से बने अनेक स्तम्भों का निर्माण करवाया ,जिनका आकार 30 फिट से 50 फिट होता था।
- ये स्तंम्भ नीचे से मोटे और ऊपर से पतले होते थे और इसके सबसे ऊपरी सिरे पर पशु की उत्कृष्ट आकृति होती थी। (जिनमें - हाथी, सिंह, बैल आदि ) ये खुले आसमान में नीचे से जमीन में गढ़े बनाये जाते थे। इनके ऊपर ओपदार पॉलिश की गई थी मौर्यकालीन प्रमुख विशेषता तथा अशोक के विभिन्न स्तम्भो पर अनेकों लिपियों में लेख लिखे होते थे वो निम्न प्रकार से है -
अरमाइका लिपी
खरोष्ठी लिपी
यूनानी लिपी
ब्रह्मा लिपी
- अशोक के अधिकतर अभिलेख प्राकृत भाषा व ब्राह्मी लिपी में है, उत्तर पश्चिम के अभिलेखों में खरोष्ठी व अरमाइका लिपि का प्रयोग किया गया है।
- Note - अशोक कालीन स्तूपों पर जो लेख लिखे जाते थे वो प्राकृत भाषा में लिखे हुए हैं।
- Note - सर्वप्रथम टी फेंथलर नामक विद्वान ने लिपि का पता लगाया था। एवं सर्वप्रथम जैम्स प्रिंसेप ने अशोक के लेखों की ब्राह्मी लिपि को पढ़ा था।
- फाह्यान ने जब भारत भर्मण किया तब मौर्यकालीन 6 स्तम्भो की जानकारी दी।
- चीनी यात्री युवाइंग जो हर्ष वर्धन के काल में भारत आये थे इन्होंने अपने ग्रन्थ यात्राव्रतांत में 15 स्तम्भो की जानकारी दी थी।
फाह्यान द्वारा देखे गए 6 स्तंम्भ निम्न प्रकार है -
- दो स्तंम्भ श्रावस्ती के जैनमत विहार के सामने
- संकिसा विहार में
- लोरियानंदनगढ़
- जम्बूद्वीप
- निगलिवा
अशोककालीन प्रमुख स्तंम्भ -
- सारनाथ स्तंम्भ - इस स्तंम्भ के शीर्ष पर चार सिंह आकृतियां जो उकड़ू आपस में पीठ सटाये बैठे हैं।
- सारनाथ संग्रहालय में स्थित।
- साँची स्तंम्भ - इस पर भी चार सिंह की आकृतियां है तथा इस पर हंस दाना चुगते हुए आकृति बनी हुई है।
- रामपुरवा स्तंम्भ - यह स्तम्भ बिहार के चंपारण जिले में स्थित हैं। तथा इस पर बैल (वृषभ) की आकृति बनी हुई है।
- राष्ट्रपति भवन नई दिल्ली। ( 3 शताब्दी )
- लोरियांनंदनगढ़ - इस पर सिंह की आकृति बनी हुई है। बिहार के चंपारण में पश्चिम में स्थित हैं।
- लीगलीवा/निगलिवा - यह स्तंम्भ नेपाल के निगाली सागर में स्थित हैं।
- इलाहाबाद स्तंम्भ - यह स्तम्भ पहले कौशाम्बी में स्थित था , इसे रानी का स्तम्भ के नाम से जाना जाता था।
- बाद में इसे अकबर ने कौशाम्बी से इलाहाबाद में स्थापित किया था।।
- लोरियाअरराज - बिहार के चंपारण जिले में पूर्व में स्थित हैं।
- रूढिया गाँव स्तम्भ - ये स्तंम्भ भी चंपारण बिहार में स्थित हैं।
- रूमबिंनदेई - यह स्तम्भ नेपाल में स्थित हैं इस स्तंम्भ के शीर्ष पर अश्व की आकृति स्थित हैं।
- बखिरा स्तंम्भ - इसे कोल्हवा स्तंम्भ के नाम से भी जानते है। इस पर सिंह की आकृति बनी हुई है।
- टॉपर - यह स्तंभ अंबाला जिला हरियाणा में स्थित था बाद में फिरोजशाह तुगलक ने कोटला में स्थापित करवाया।
- वर्तमान में दिल्ली में स्थित है।
- दिल्ली टॉपर - यह सन 1356 में सुल्तान फिरोजशाह तुगलक ने मेरठ से मंगवाया था वर्तमान में दिल्ली के उत्तर पश्चिम में स्थित हैं।
- संकिसा स्तंभ - इस स्तम्भ पर गज (हाथी) की आकृति बनी हुई है
सारनाथ स्तंम्भ
- सारनाथ स्तंम्भ स्तंभ का निर्माण अशोक ने उत्तर प्रदेश में करवाया था।
- तथा इन पर जो पशु आकृतियां है उनका महत्व सिंधु घाटी सभ्यता काल से चला आ रहा था और इन्हीं का अंकन हमें आदि काल से ही प्राप्त होता है इन पशुओं का अंकन बौद्ध ग्रंथों में भी देखने को मिलता है। इनमें चार मुख्य पशुओं का अंकन किया गया है तथा इन पशुओं जन्म, कुल, राशियों आदि का प्रतीक माना गया है।
- हाथी - पूर्व दिशा का प्रतीक माना गया है।
- बैल - पश्चिम दिशा का प्रतीक माना गया है।
- सिंह - उत्तर दिशा का प्रतीक माना गया है।
- घोड़ा - दक्षिण दिशा का प्रतीक माना गया है।
- इन चारों पशुओं के बीच में एक चक्र जिसमें 24 आरे बने हुए है जो सम्राट का भाव प्रदर्शित करता है ।
- इसमे सबसे ऊपर में चार सिंह आकृति उकड़ू आपस में पीठ सटाकर बैठे हैं। पास में एक चक्र बना हुआ है जिसमें 32 आरे बने हुए थे। यह चक्र प्राकृतिक दुर्घटना से के कारण ध्वस्त हो गया था। इस पर बनी हुई पशुओं की आकृति का सही क्रम - बैल, घोड़ा, सिंह, हाथी ।
- इस स्तंम्भ की ऊंचाई 50 फिट थी। यहां से प्राप्त स्तंम्भ शीर्ष सारनाथ पुरातात्विक संग्रहालय उत्तप्रदेश में स्थित हैं।
मौर्यकालीन कलाकृतियां (mauryan artifacts)
- धौली की चट्टान - यह उड़ीसा के पूरी जिले में स्थित हैं। यहां पहाड़ी पर विशाल हाथी की आकृति उत्कीर्ण की गई हैं,तथा अशोक कालीन शिलालेख खुदे हुए हैं। जो मौर्यकालीन मूर्तिकला का उत्तम उदाहरण है।
- इसमें हाथी को बलिष्ठ व समानुपाति बनाया गया है,दूर से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है मानो हाथी खड़ा हुआ है।
- बज्रासन - यह बज्रासन बोधगया में बलुए पत्थर से बना हुआ है। इस पर ओपदार मौर्यकालीन पोलिश की गई हैं। तथा इस पर हंस व फूलों की आकृतियां उकेरी गई है। हूबहू ऐसी आकृति हमे साँची में भी देखने को मिलती हैं।
- इस जगह पर गौतम बुध को बोधिसत्व की प्राप्ति हुई थी और इसी स्थान पर सम्राट अशोक ने वज्रासन वह बोधीग्रह का निर्माण करवाया था तथा प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व में यहां पर मंदिर का निर्माण करवाया गया।
- बज्रासन के अवशेष सबसे पहले कनिघम के द्वारा उत्खनन करवाने पर मिले थे।
- कालशिला प्रज्ञापन - इस चट्टान पर हाथी सिर्फ रेखाओं से उकेरा गया है तथा ब्राह्मी लिपि में एक लेख लिखा गया और उसी स्थान पर ब्राह्मी लिपि में 'गजमेत' शब्द लिखा गया जिसका अर्थ होता है 'सर्वश्रेष्ठ हाथी'
- यह हाथी बुध का प्रतीक माना गया है। (उत्तरप्रदेश के देहरादून )
- वेसनगर का स्तम्भशीर्ष - तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के लगभग हमें दो स्तंम्भ शीर्ष बेसनगर, मध्य प्रदेश से प्राप्त हुए हैं । जिसमें एक स्तंभ शीर्ष कल्पवृक्ष के रूप में तथा दूसरा स्तम्भ शीर्ष ताड़ वृक्ष के रूप में पत्ते व फलों के साथ उकेरा गया है, तथा इन वृक्षों पर वस्त्राभूषण व सिक्कों से भरे थैले लटकाए हुए दर्शाए गए हैं। वर्तमान में कल्पवृक्ष स्तंम्भ शीर्ष कोलकाता के भारतीय संग्रहालय में स्थित है।
- दूसरा ताड़वृक्ष स्तंम्भ शीर्ष वर्तमान में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सांस्कृतिक व पुरातात्विक विभाग के संग्रहालय में है।
यक्ष मूर्तियां
- Most: - सबसे प्राचीन ऐतिहासिक मूर्ति परखर ग्राम की यक्ष मूर्ति । (मथुरा)
- इसी मूर्ति को कुछ विद्वान अजातशत्रु की मूर्ति भी कहते है।
- बेसनगर से प्राप्त यक्ष प्रतिमा जिसका स्थानीय नाम तेलीन है और यह वर्तमान में भारतीय संग्रहालय कोलकाता में संग्रहित है। ऊंचाई 6 फिट 7 इंच।
- सोपारा से प्राप्त यक्ष मूर्ति यह मूर्ति राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली में संग्रहित है।
- प्राचीन वाराणसी के राजघाट से प्राप्त त्रिमुखी यक्ष मूर्ति और यह मूर्ति वर्तमान में भारत कला भवन वाराणसी में संग्रहित है।
- पटना शहर में दीदारगंज से प्राप्त चामर धारणी यक्ष मूर्ति आदमकद,यह मूर्ति पटना संग्रहालय में स्थित हैं (बलुआ पत्थर) ओपदार पोलिश युक्त , ऊंचाई 5.5 फिट।
- मौर्य काल से मिली यक्ष मूर्तियों से हमें यह जानकारी मिलती है कि यक्ष पूजा सर्वाधिक होती थी। और लोक कला के बारे में जानकारी मिलती है और भारत में यक्ष मूर्तियों की पूजा अति प्राचीन काल से होती आ रही है।
- अथर्ववेद में यक्षों को पूजनीय माना है।
- Note - वासुदेव सरण अग्रवाल की पुस्तक 'भारतीय कला' (पॉलिश की परम्परा के बारे में जिक्र किया गया है।
- कुछ अन्य उदाहरण जिनमें पिपरवा स्तुप से प्राप्त क्रिस्टल की अस्थि मंजूषा, पटना से दो यक्ष मूर्तियां भी मिली है, पटना से एक तीर्थंकर का धड़ भी प्राप्त हुआ है। जिस पर पोलिश की गई हैं।
- Note - मौर्यकालीन कला राजकीय थी।
- Note - शुंगकालीन कला जनसामान्य थी।