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भारतीय मूर्तिकला | मौर्यकालीन मूर्तिकला | शुंग सातवाहन काल |

मौर्य युग के दौरान, सम्राटों द्वारा प्रदान किए गए संरक्षण, विदेशी प्रभाव का प्रवाह, और बढ़ती भौतिक समृद्धि ने मूर्तिकला की कला को पुनर्जीवित किया

  • Scarlett Hill
    Scarlett Hill
    February 19, 2024
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  • प्राचीन काल से भारतीयों द्वारा मूर्तिकला की कला का अभ्यास किया गया था। भारतीय मूर्तिकला के सबसे प्राचीन नमूने सिंधु घाटी सभ्यता के स्थलों पर पाए गए मुहरों,मूर्तियां, बर्तनों में हैं। उसके बाद हमें मौर्यों के काल तक भारतीय मूर्तिकला के कोई नमूने नहीं मिले। इसका मतलब यह नहीं है कि इस लम्बे काल के दौरान कला मृत रही। इस अवधि के दौरान भी यह किसी न किसी रूप में अस्तित्व में थी। 

  • मौर्य युग के दौरान, सम्राटों द्वारा प्रदान किए गए संरक्षण, विदेशी प्रभाव का प्रवाह, और बढ़ती भौतिक समृद्धि ने मूर्तिकला की कला को पुनर्जीवित किया।

  • अशोक के पत्थर के स्तंभों पर पशु-आकृतियां अब तक मौजूद हैं और उन्हें कला के सुंदर कार्यों के रूप में माना जाता है। सारनाथ स्तंभ के प्रसिद्ध शेर और रामपुरवा स्तंभ के सुंदर बैल प्रतिभाशाली मूर्तिकारों की कृतियाँ हैं। 
  • दीदारगंज में एक यक्ष की एक सुंदर आकृति मिली है, लेकिन यह मौर्य काल के बाद की है।

  • विभिन्न स्थानों पर यक्षों के कई आंकड़े भी मिले हैं। वे मजबूत, भारी, बुल-नेक्ड और उनमें से कुछ जीवन-आकार से भी बड़े हैं। हालांकि सही नहीं है, उन्हें ठीक नमूनों के रूप में माना जाता है और जब हड़प्पा की मुहर-आंकड़ों के साथ तुलना की जाती है, तो वे मूर्तिकला में एक प्राचीन परंपरा के अस्तित्व को प्रदर्शित करते हैं।

1. मौर्यकालकालीन पूर्व कला अवशेष :-

गिरिव्रज के अवशेष

  • गिरिव्रज के अवशेष - महाभारत काल में यह व्रहद्रथ की एक राजधानी हुआ करती थी जो पहाड़ियों घिरी हुई एक विशेष जगह थी।
  • इस राजधानी की सुरक्षा के लिए व्रहद्रथ ने गिरिव्रज के चारों ओर 12-13 फीट ऊँची और 17 फीट तक मोटी पत्थरों के विशाल टुकड़ों का उपयोग करके एक दीवार बनवाई।
  • उस दीवार के कुछ अवशेष हैं जिन्हें हम आज भी देख सकते हैं।
  • इस दीवार को साईक्लोपियन वॉल के नाम से जानी जाती हैं।

गिरिव्रज मगध में राजधानी,  बिहार
Image - गिरिव्रज मगध में राजधानी, बिहार

घोषितराम विहार

  • घोषितराम विहार - कौशाम्बी में उत्खनन से हमे मौर्यकाल से पहले के घोषितराम बोद्ध विहार के अवशेष प्राप्त होते हैं।
  • इसका निर्माण मौर्यकाल से पूर्व गौतम बुद्ध के आवास के लिए करवाया गया था। इसका निर्माण घोषितराम नाम के एक व्यापारि ने करवाया था।
  • इस विहार का निर्माण 5 वी. शताब्दी में हुआ था।
  • 6 शताब्दी ईसा. पूर्व. में तोरमण शासक हूण ने इसे नष्ट कर दिया था।
  • 3 शताब्दी ईसा पूर्व में अशोक के समय इस स्तुप के निर्माण में वृद्धि की गई थी। (पुनर्निर्माण)
  • इस विहार से मोहर मिली है जिस पर लिखा है - कौशाम्बया घोषितराम महाविहारे भिक्षुसंघस्य।
  • शतदल कमल की आकृति का एक दीपक भी प्राप्त हुआ है।

लोरिया नन्दनगढ़ का श्मशान चैत्य 

  • लोरिया नन्दनगढ़ का श्मशान चैत्य - बिहार के चंपारण में श्मशान चैत्य के अवशेष ओर अशोक का शिला स्तंम्भ मिला है।
  • यहाँ से एक स्वर्ण पात्र पर अंकित नग्न मातृदेवी की आकृति मिली है। इस प्रकार के श्मसान चेतयो का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।

श्री चक्र

  • श्री चक्र - उत्तरी भारत में कौशाम्बी, पाटलिपुत्र, मथुरा आदि विभिन्न स्थानों से पत्थर की बनी हुई गोल चक्रियां मिली है। जिन पर नग्न मातृदेवी की आकृतियां अंकित है। साथ में पशु तथा ताड़ वृक्षों का भी अंकन किया गया है। ज्यामितीय डिजाइन में अलंकृत की गई है। इन्ही को श्री चक्र पुकारा जाता है।

पिपरवा का स्तुप

  • पिपरवा का स्तुप - यह स्तुप उत्तरप्रदेश के बस्सी जिले में पिपरवा नामक स्थान से मिला है।
  • 1897 - 1998 में डॉ. डब्लू पेम्पे ने सर्वप्रथम इस स्तुप का उत्खनन करवाया था, यहां से पत्थर से बनी पेटी जिसमें बहुमुल्य पत्थरों तथा सोने से बनी वस्तुएं मिली।
  • एक ढक्कनदार अस्थि रखने का कलश जिस पर ब्राह्मी लिपि में लेख लिखा गया है। (कुछ विद्वान इस पात्र हैं स्वंय बुद्ध की अस्थियां बताते हैं व कुछ विद्वान उनके परिजनों की अस्थियां बताते हैं)
  • Note - भारत में ब्रह्मणि लिपी का विकास पिपरवा स्तुप से माना जाता है।।   

(उत्तरप्रदेश) पिपरवा
Image - (उत्तरप्रदेश) पिपरवा

2. मौर्यकालीन कला ( 323 - 184 ई. पूर्व.)

  • मौर्य वंश की स्थापना चन्द्रगुप्त मौर्य ने विष्णुगुप्त/कौटिल्य के सहयोग से नन्द वंश के अंतिम शासक घनानंद की हत्या कर की। इनकी सर्वप्रथम राजधानी पाटलिपुत्र (बिहार) थी।
  • चन्द्रगुप्त मौर्य ने विशाल राजप्रासाद एवं सभा भवन जो लकड़ी का बना हुआ था, का निर्माण करवाया था।
  • चंद्रगुप्त मौर्य ने सिंधु नदी के पार आक्रमण में यूनानी शासक सेल्यूकस निकेटर को हराया, जिसके बाद 303 ईसा पूर्व में दोनों के बीच एक संधि पर हस्ताक्षर किए गए।
  • और सेल्यूकस निकेटर ने अपनी बेटी हेलेन का विवाह चंद्रगुप्त मौर्य से कर दिया, विदेशी राजदूत मेगस्थनीज को चंद्रगुप्त के दरबार में भेजा।
  • मेगस्थनीज ने इंडिका ग्रँथ की रचना की। जिसमें मौर्य शाही प्रशासन के बारे में विवरण मिलता है।
  • चन्द्रगुप्त को मेगस्थनीज सेन्ड्राकोट्स नाम से पुकारता था।
  • रुद्रदामन के जूनागढ़ शिलालेख में, चन्द्रगुप्त मौर्य का नाम एन्ड्रोकोट्स लिखा हुआ है।
  • चन्द्रगुप्त मौर्य जैन धर्म के अनुयायी थे। उन्होंने भद्रबाहु से जैन धर्म की दीक्षा ली। अपने जीवन के अंतिम समय में श्रवणबेलगोला चले गए और वहां चंद्रगिरि पर्वत (कर्नाटक) पर संलेखना विधि से उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए।

  • बिन्दुसार (298 से 273 ई.पू.)(चन्द्रगुप्त का पुत्र) शासक बना।
  • यूनानियों ने बिन्दुसार को अमित्रघात/अमित्रचेतस कहा था। (शत्रु का नाश करने वाला)

  • सम्राट अशोक (273 - 223 ईसा पूर्व)(बिन्दुसार का पुत्र) शासक बना।
  • अशोक बौद्घ धर्म के अनुयायी थे, इन्होंने बौद्घ धर्म के प्रचार प्रसार के लिए प्रस्तर( लाल चुनार) का प्रयोग किया, जगह-जगह पत्थर के स्तंभों पर लेख खुदवाए थे।

  • अशोक ने धर्म निधि को स्थाई करने के लिए शिला फलक व स्तंभों पर इसको लिखवाया था, ताकि वहां से गुजरने वाले सभी लोग शिक्षा ग्रहण कर सके।

  • सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को धर्म का प्रचार करने के लिए श्रीलंका भेजा।
  • उनके माध्यम से श्रीलंका के राजा देवानामपिया तिस्सा ने बौद्ध धर्म अपनाया और वहां 'महाविहार' नामक बौद्ध मठ की स्थापना की।

  • मौर्य काल में मुख्यतः राजप्रासाद, स्तूप, चैत्य, विहार गुफाएँ आदि का निर्माण हुआ।
  • मौर्यकाल में लोककला के रूप में अनेकों मृण मूर्तियां, यक्ष-यक्षिणी की मूर्तियों का निर्माण किया।
  • मौर्यकालीन कला की एक महत्वपूर्ण कृति 'मौली का हाथी' हैं। जिसमें चट्टान को काटकर हाथी बनाया गया है।

मौर्यकाल की जानकारी के स्त्रोत

  • कौटिल्य का अर्थशास्त्र
  • मेगस्थनीज की इंडिका
  • चन्द्रगुप्त का राजप्रसाद
  • अशोक के शिलास्तम्भ
  • बाराबर व नागर्जुन की पहाड़ियां
  • साँची व भरहुत स्तुप आदि।
Note - चन्द्रगुप्त मौर्य के राजप्रसाद से तुलना मेगस्थनीज ने सीरिया देश के सुसा व एक बटना महलों से की।

- 5 वी. शताब्दी में गुप्त शासक चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के काल में फाह्यान भारत आया था। (चन्द्रगुप्त द्वितीय)
चन्द्रगुप्त मौर्य द्वारा निर्मित राजप्रसाद व अलंकृत, बेल बुटो को देखकर व महान अशोक द्वारा निर्मित ओपदार पॉलिस को देखकर आश्चर्यचकित हो गए थे।

राजप्रसाद के अवशेष जो हमें देखने को मिलते हैं वे पाटलिपुत्र के उत्तर में स्थित बुलनदिबाग में देखने को मिलते हैं, यह प्रमाण अशोक द्वारा निर्मित महलों के है इसमें 80 स्तंभों से युक्त विशाल मंडप मिला है।

बराबर व नागार्जुन की पहाड़ियां 

  • इन पहाड़ियों में सम्राट अशोक व उनके पोत्र दशरथ ने आजीविक सम्प्रदाय के बोद्ध भिक्षुओं के लिए गुफाओं का निर्माण करवाया था। (बिहार गया के निकट)
  • (यहां से मिले गुहा लेखों से यह जानकारी मिलती हैं)
  • बराबर की पहाड़ियों में 2 गुफाओ में हमे मौर्यकालीन मूर्तिकला के उत्कृष्ट नमूने मिलते है। 1. सुदामा गुफा, 2. लोमस ऋषि गुफा। ( पर्णशालाओं की शैली )
  • लोमश ऋषि गुफा के प्रवेश द्वार पर उत्कीर्ण दोनों और पंखों पर तिरछे खड़े दो स्तम्भों पर मेहरबान बनाये गये है।
  • नागार्जुन की पहाड़ी में गोपी गुफा का निर्माण सम्राट अशोक के पौत्र दशरथ की आज्ञा से हुआ था। यह गुफा विशाल व उत्कर्षट है , इसकी भीतरी दीवार पर मौर्यकालीन ओपदार पॉलिश चढ़ी हुई है।

ईंटो से निर्मित बौद्ध स्तूप -

  1. साँची
  2. भरहुत
  3. तक्षशिला का धर्मराजिका स्तूप

  • इनका आकार 16 × 10 × 3 था।
  • स्तुप मरे हुए व्यक्ति के अवशेषों के ऊपर जो चबूतरा बनाया जाता हैं।
  • उसे स्तुप, समाधि, थुहा भी कहते हैं।

  • पहली बार गौतम बुद्ध की अस्थियों को 8 भागों में बांटकर 8 स्थानों पर स्तूपों का निर्माण कराया गया।
  • बाद में मौर्य शासक सम्राट अशोक ने सभी हड्डियों को एकत्र किया और पूरे भारत में लगभग 84,000 स्तूप बनवाये।
  • जिसमें हमें खंडहर के रूप में कुछ स्तूपों के अवशेष मिलते हैं।

मौर्यकालीन प्रमुख स्तुप - साँची स्तुप, सारनाथ स्तुप, तक्षशिला का स्तुप आदि।

मौर्य काल के दौरान निर्मित स्तूप का निर्माण ईंटों से किया गया था और बाद में शुंग काल के दौरान शुंग शासकों द्वारा इसके विध्वंस के कारण पत्थरों से इसका निर्माण किया गया था।

मौर्यकालीन उपलब्धि -
     राजप्रसाद        -           स्तुप           -            स्तंम्भ
         |                              |                             |
    (लकड़ी से)                 (ईंटो से)                   (पत्थर से)


अशोक कालीन शिला स्तंम्भ

अशोक के तेरहवें अभिलेख के अनुसार अशोक ने अपने राज्याभिषेक के 8 वे वर्ष में कलिंग का युद्ध लड़ा था। अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए।

इस युद्ध के बाद अशोक ने विस्तार नीति को समाप्त कर दिया और उसके स्थान पर धर्म नीति को अपनाया (अहिंसा, सत्य, प्रेम, दान और परोपकार का मार्ग अपनाया)।

Note - कलिंग युद्ध का वर्णन 13 वे अभिलेख से मिलता है।

बौद्ध धर्म को फैलाने के लिए अशोक ने पत्थर के टुकड़ों से बने कई स्तंभ बनवाए, जिनका आकार 30 फीट से लेकर 50 फीट तक था। ये खंभे नीचे से मोटे और ऊपर से पतले थे और शीर्ष पर एक जानवर की उत्कृष्ट आकृति बनी हुई थी। (सहित - हाथी, शेर, बैल आदि)
इनका निर्माण खुले आसमान में नीचे से, जमीन में गड्ढों बनाये जाते थे।

इनके ऊपर ओपदार पॉलिश की गई थी मौर्यकालीन प्रमुख विशेषता तथा अशोक के विभिन्न स्तम्भो पर अनेकों लिपियों में लेख लिखे होते थे वो निम्न प्रकार से है -
  1. अरमाइका लिपी
  2. खरोष्ठी लिपी
  3. यूनानी लिपी
  4. ब्रह्मा लिपी

अशोक के अधिकांश शिलालेख प्राकृत भाषा और ब्राह्मी लिपि में हैं, उत्तर-पश्चिम के शिलालेखों में खरोष्ठी और अरामिका लिपि का प्रयोग किया गया है।

Note - अशोक कालीन स्तूपों पर जो लेख लिखे जाते थे वो प्राकृत भाषा में लिखे हुए हैं।
Note - सर्वप्रथम टी फेंथलर नामक विद्वान ने लिपि का पता लगाया था। एवं सर्वप्रथम जैम्स प्रिंसेप ने अशोक के लेखों को पढ़ा था।

फाह्यान ने जब भारत भर्मण किया तब मौर्यकालीन 6 स्तम्भो की जानकारी दी।
चीनी यात्री युवाइंग जो हर्ष वर्धन के काल में भारत आये थे इन्होंने अपने ग्रन्थ यात्राव्रतांत में 15 स्तम्भो की जानकारी दी थी।

फाह्यान द्वारा देखे गए 6 स्तंम्भ निम्न प्रकार है -
  • श्रावस्ती के जैनमत विहार के सामने दो स्तम्भ
  • संकिसा विहार में
  • लोरियानंदनगढ़
  • जम्बूद्वीप
  • निगलिवा

Q. अशोक के स्तम्भो को किस नाम से जाना जाता है ?   
  1. स्तंम्भ
  2. अशोक के लाट
  3. परगाह
  4. लाट

अशोककालीन प्रमुख स्तंम्भ

  • सारनाथ स्तंभ - इस स्तंभ के शीर्ष पर चार शेर की आकृतियाँ हैं जो एक-दूसरे की ओर पीठ करके उकड़ू स्थिति में बैठे हैं।
  • साँची स्तंभ - इसमें चार शेरों की आकृतियाँ और दाना चुगते हंस की आकृति भी है।
  • रामपुरवा स्तंम्भ - यह स्तम्भ बिहार के चंपारण जिले में स्थित हैं। तथा इस पर बैल (वृषभ) की आकृति बनी हुई है।राष्ट्रपति भवन नई दिल्ली। ( 3 शताब्दी )
  • लोरियानन्दनगढ़ - इस पर सिंह की आकृति खुदी हुई है। पश्चिम में बिहार के चंपारण में स्थित है। लीगालिवा/निगालिवा - ये स्तंभ नेपाल के निगाली सागर में स्थित हैं।

  • इलाहाबाद स्तंम्भ - यह स्तम्भ पहले कौशाम्बी में स्थित था , इसे रानी का स्तम्भ के नाम से जाना जाता था। बाद में इसे अकबर ने कौशाम्बी से इलाहाबाद में स्थापित किया था।
  • लोरियाअरराज - बिहार के चंपारण जिले में पूर्व में स्थित हैं।
  • रूढिया गांव स्तंभ - ये स्तंभ भी चंपारण बिहार में स्थित हैं।
  • रूमबिंनदेई - यह स्तम्भ नेपाल में स्थित हैं इस स्तंम्भ के शीर्ष पर अश्व की आकृति स्थित हैं।
  • बखिरा स्तंभ- इसे कोल्हवा स्तंभ के नाम से भी जाना जाता है। इस पर सिंह की आकृति बनी हुई है।
  • टॉपर - यह स्तम्भ हरियाणा के अम्बाला जिले में स्थित था, बाद में फिरोजशाह तुगलक ने इसे कोटला में स्थापित करवाया। वर्तमान में दिल्ली में स्थित हैं।

  • दिल्ली टॉपर - यह सन 1356 में सुल्तान फिरोजशाह तुगलक ने मेरठ से मंगवाया था वर्तमान में दिल्ली के उत्तर पश्चिम में स्थित हैं।
  • संकिसा स्तंभ - इस पर गज (हाथी) की आकृति बनी हुई है।

सारनाथ स्तंम्भ

सारनाथ स्तंभ का निर्माण अशोक ने उत्तर प्रदेश में करवाया था।
तथा इन पर बनी पशु आकृतियों का महत्व सिन्धु घाटी सभ्यता काल से ही चला आ रहा है तथा इनका अंकन हमें प्राचीन काल से ही मिलता है। इन जानवरों का अंकन बौद्ध ग्रंथों में भी देखा जा सकता है।
इनमें चार प्रमुख पशुओं को चिन्हित किया गया है और इन पशुओं को जन्म, कुल, राशि आदि का प्रतीक माना जाता है।

  1. हाथी - पूर्व दिशा का प्रतीक माना गया है।
  2. बैल - पश्चिम दिशा का प्रतीक माना गया है।
  3. सिंह - उत्तर दिशा का प्रतीक माना गया है।
  4. घोड़ा - दक्षिण दिशा का प्रतीक माना गया है।

  • इन चारों पशुओं के बीच में एक चक्र बना हुआ है जो सम्राट का भाव प्रदर्शित करता है ।
  • इसमे सबसे ऊपर में चार सिंह आकृति उकड़ू आपस में पीठ सटाकर बैठे हैं। पास में एक चक्र बना हुआ है जिसमें 32 आरे बने हुए थे। यह चक्र प्राकृतिक दुर्घटना से के कारण ध्वस्त हो गया था।
  • इस पर बनी हुई पशुओं की आकृति का सही क्रम - हाथी, बैल, घोड़ा, सिंह ।
  • इस स्तंम्भ की ऊंचाई 50 फिट थी।
  • यहां से प्राप्त स्तंम्भ शीर्ष सारनाथ पुरातात्विक संग्रहालय उत्तप्रदेश में स्थित हैं।

मौर्यकालीन कलाकृतियां 

धौली की चट्टान - यह उड़ीसा के पूरी जिले में स्थित हैं। यहां पहाड़ी पर विशाल हाथी की आकृति उत्कीर्ण की गई हैं,तथा अशोक कालीन शिलालेख खुदे हुए हैं। जो मौर्यकालीन मूर्तिकला का उत्तम उदाहरण है।
इसमें हाथी को बलिष्ठ व समानुपाति बनाया गया है,दूर से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है मानो हाथी खड़ा हुआ है।

बज्रासन - यह बज्रासन बोधगया में बलुए पत्थर से बना हुआ है। इस पर ओपदार मौर्यकालीन पोलिश की गई हैं। तथा इस पर हंस व फूलों की आकृतियां उकेरी गई है। हूबहू ऐसी आकृति हमे साँची में भी देखने को मिलती हैं।
इस जगह पर गौतम बुध को बोधिसत्व की प्राप्ति हुई थी और इसी स्थान पर सम्राट अशोक ने वज्रासन वह बोधीग्रह का निर्माण करवाया था तथा प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व में यहां पर मंदिर का निर्माण करवाया गया।
बज्रासन के अवशेष सबसे पहले कनिघम के द्वारा उत्खनन करवाने पर मिले थे।

कालशिला प्रज्ञापन - इस चट्टान पर हाथी सिर्फ रेखाओं से उकेरा गया है तथा ब्राह्मी लिपि में एक लेख लिखा गया और उसी स्थान पर ब्राह्मी लिपि में 'गजमेत' शब्द लिखा गया जिसका अर्थ होता है 'सर्वश्रेष्ठ हाथी'
तथा यह हाथी बुध का प्रतीक माना गया है। (उत्तरप्रदेश के देहरादून )

वेसनगर का स्तम्भशीर्ष - तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के लगभग हमें दो स्तंम्भ शीर्ष बेसनगर, मध्य प्रदेश से प्राप्त हुए हैं
जिसमें एक स्तंभ शीर्ष कल्पवृक्ष के रूप में तथा दूसरा स्तम्भ शीर्ष ताड़ वृक्ष के रूप में पत्ते व फलों के साथ उकेरा गया है, तथा इन वृक्षों पर वस्त्राभूषण व सिक्कों से भरे थैले लटकाए हुए दर्शाए गए हैं।
वर्तमान में कल्पवृक्ष स्तंम्भ शीर्ष कोलकाता के भारतीय संग्रहालय में स्थित है।
दूसरा ताड़वृक्ष स्तंम्भ शीर्ष वर्तमान में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सांस्कृतिक व पुरातात्विक विभाग के संग्रहालय में है।

यक्ष मूर्तियां -
Most सबसे प्राचीन ऐतिहासिक मूर्ति परखर ग्राम की यक्ष मूर्ति। (मथुरा)
इसी मूर्ति को कुछ विद्वान अजातशत्रु की मूर्ति भी कहते है।

बेसनगर से प्राप्त यक्ष प्रतिमा जिसका स्थानीय नाम तेलीन है और यह वर्तमान में भारतीय संग्रहालय कोलकाता में संग्रहित है। ऊंचाई 6 फिट 7 इंच।

सोपारा से प्राप्त यक्ष मूर्ति यह मूर्ति राष्ट्रीय संग्रहालय नई दिल्ली में संग्रहित है।

प्राचीन वाराणसी के राजघाट से प्राप्त त्रिमुखी यक्ष मूर्ति और यह मूर्ति वर्तमान में भारत कला भवन वाराणसी में संग्रहित है।


ओपदार पोलिश युक्त , ऊंचाई 5.5 फिट
Image - दीदारगंज से प्राप्त चामर धारणी यक्ष मूर्ति आदमकद ओपदार पोलिश युक्त , ऊंचाई 5.5 फिट
पटना शहर में दीदारगंज से प्राप्त चामर धारणी यक्ष मूर्ति आदमकद,यह मूर्ति पटना संग्रहालय में स्थित हैं (बलुआ पत्थर) ओपदार पोलिश युक्त , ऊंचाई 5.5 फिट।

मौर्य काल से मिली यक्ष मूर्तियों से हमें यह जानकारी मिलती है कि यक्ष पूजा सर्वाधिक होती थी। और लोक कला के बारे में जानकारी मिलती है और भारत में यक्ष मूर्तियों की पूजा अति प्राचीन काल से होती आ रही है।
अथर्ववेद में यक्षों को पूजनीय माना है।

Note- वासुदेव सरण अग्रवाल की पुस्तक 'भारतीय कला' (पॉलिश की परम्परा के बारे में जिक्र किया गया है।

कुछ अन्य उदाहरण जिनमें पिपरवा स्तुप से प्राप्त क्रिस्टल की अस्थि मंजूषा, पटना से दो यक्ष मूर्तियां भी मिली है, पटना से एक तीर्थंकर का धड़ भी प्राप्त हुआ है। जिस पर पोलिश की गई हैं।

Note - मौर्यकालीन कला राजकीय थी।
Note - शुंगकालीन कला जनसामान्य थी।

शुंग सातवाहन काल

शुंगवंश की स्थापना पुष्यमित्र शुंग ने अंतिम मौर्य शासक बृहदत की हत्या करके शुंग वंश की नींव डाली थी 185 ईसा. पूर्व में।
शुंग वंश की स्थापना के साथ ही क्लासिकल युग की शुरुआत हो गई थी।
इस युग में कला का स्थानीय देश की स्थान पर भौगोलिक विस्तार के कारण कला का सर्वदेश्य रूप उभर कर सामने आया।
शुंगकालीन कुछ महत्वपूर्ण कलाकृतियां -
भरहुत (खोज-कनिघम 1873 में)
साँची (खोज-टेलर)
अमरावती (खोज-नील मैकेंजी 1797 में)
नागार्जुन कोंडा, पश्चिम भारत में काले, भांजा, पितलखोरा आदि।

साँची स्तुप     
              

अशोक ने लगभग 84000 स्तूपों का निर्माण करवाया था। जिनमें से एक सांची भी प्रमुख हैं।
सांची स्तुप मध्यप्रदेश के रायसेन जिले में विदिशा से 9 किमी दूर उत्तर पश्चिम में स्थित है।
इस स्तुप का निर्माण ईंटो से सर्वप्रथम मौर्य शासक सम्राट अशोक ने करवाया था। तथा इसका बाद में प्रस्तर युक्त निर्माण शुंग शासक ने करवाया था।
सांची स्तुप की खोज जर्नल टेलर ने की थी। इस स्तुप पर बुद्ध के जन्म जन्मांतर की कहानियां अंकित है। (जातक कथा)

इस स्तुप का पुनर्निर्माण करवाने की पहली सफल कोशिश सर जॉन मार्शल ने की 1912 से 1919 ई. के बीच ।

स्तुप की संरचना -
                  
सर्वप्रथम अशोक ने एक स्तंम्भ खड़ा करवाया था। उसके बाद में शुंग शासको ने इसमे परिवर्तन करते हुए बहुत विकास करवाया था। तथा इसकी ऊंचाई लगभग 54 फिट है इसका व्यास 120 फिट। लाल बलुआ पत्थर से निर्मित।
स्तूप के चारों और बनी वैदिका व तोरण द्वारों का निर्माण शुंगकाल में हुआ।
गुम्बद के चारों और चबूतरा बना है इस चबूतरे की ऊंचाई 16 फीट है जो पद्प्रक्षिणापथ में काम आता है।
तथा पद्प्रक्षिणापथ में 7 फिट लम्बे शिलाबट बिछे हुए हैं। यहां पहुचने के लिए दक्षिण में दोहरी सीढ़ी बनी हुई है।
तथा 9 फिट ऊंचे अष्टकोणीय स्तम्भों को बांधने के लिए 2 ऊंचा उष्णीय है।
               
तथा इन स्तम्भों के बीच मे 3.15 इंच की जगह छोड़-छोडकर दो-दो फिट चौड़ी सूचियां लगी हुई हैं।
सांची में बने सम्पूर्ण अलंकृत तोरण द्वार 34 फिट ऊंचे है।
सांची के सभी तोरण द्वार ईसा. पूर्व. प्रथम में बने हुए हैं।
सबसे पहले दक्षिण द्वारा बना यही सांची का मुख्य प्रवेश द्वार है।
बाद में क्रमशः उत्तर, पूर्व, पश्चिम के तोरण द्वार बनाये गए।
चारों तोरण द्वारों पर अधिपति है जो व्याधियों से रक्षा करते हैं।
उतर दिशा - राजकुबेर
पूर्व दिशा - गन्धर्व राज धृतराष्ट्र
दक्षिण दिशा - नागराज
पश्चिम में - कुशमांडो राज विरुपाक्ष

तोरणों में खंभो की ऊंचाई 24 फिट है। खम्बों के सबसे ऊपर सूची बनी हुई है, तथा इन पर त्रिरत्न व धर्मचक्र बना हुआ था जो अभी खण्डित अवस्था में है।
इन सूचियों के आस-पास में हाथियों की आकृतियां बनी हुई है। जो तोरण द्वार के ऊपर बनी हुई मुर्तियों को सहारा प्रदान करती हैं।
सबसे नीचे की सूची व स्तंम्भ के बीच की दूरी को भरने के लिए नीचे दोनों और द्वारपाल यक्ष बनाये गए हैं।
सांची के तोरण द्वारों में रिक्त स्थानों की पूर्ति करने के लिए यक्ष व यक्षणियों की मूर्तियां बनी हुई है म
खम्बों के शीर्ष भाग पर शेर, हाथी, वामन पीठ से पीठ सटाए बैठे हैं।
सांची स्तुप पर अभी तक 5 जातक कथाओं को पहचाना गया है।
छदन्त जातक कथा
साम जातक कथा
वेस्सान्तर जातक कथा
महाकपि जातक कथा
अलम्बुष जातक कथा

साँची स्तुप पर मुख्य रूप से जिस देवता की मूर्तियां बनाई गई है वो इंद्र है।
जिसका विवरण कुछ इस प्रकार है -
इंद्र शाला का दृश्य
बुद्ध के जुड़ा उत्सव का दर्शय
साम जातक कथा का दर्शय

साँची स्तुप पर पशु-पक्षियों व वनस्पतियों का अंकन इसी स्तुप पर प्राकृतिक व कृत्रिम या स्वभाविक व काल्पनिक दोनों युगों में हुआ है।
साँची पर वृक्षों में आम का पेड़, अशोक, शालभंजिका, तथा कमल, कलपता तथा पुष्पपत्र आदि वृक्षों का रमणीय अंकन किया गया है।
Not - जॉन मार्शल ने साँची महास्तूप का नामकरण वानस्पति शैली कर दिया है।
साँची में जो आकृतियां बनी हुई है उनको मूर्तियां कहने की बजाय खुदे हुए चित्रांकन कहना उचित रहेगा।
क्यो की यहां हाथी दांत के नक्काशी के नमूने पर हुई है।
(खोदने की शैली)


भरहुत स्तुप (185 ईसा. पु. से 80 ईसा. पु. तक)

भरहुत स्तुप का निर्माण अशोक ने करवाया था, मौर्यकाल में इसका निर्माण सर्वप्रथम ईंटो से हुआ था। तथा बाद शुंगकाल में इसका निर्माण प्रस्तर से हुआ था।
इसकी खोज जनरल कनिघम ने 1873 में की।
भरहुत स्तुप मध्यप्रदेश के सतना जिले में स्थित है।
मजुमदार के अनुसार भरहुत का निर्माण विभिन्न कालक्रम में हुआ था। इसकी जानकारी हमे प्राप्त अभिलेख से मिलती है।
भरहुत स्तुप से मिले अभिलेख 185 ईसा. पु. से लेकर 75 ईसा. पु. तक के अंतर में लिखे गए हैं।
भरहुत के तोरण द्वार व वैदिका के अवशेष मिले हैं जो कोलकता संग्रहालय में रखे गए हैं कुछ इलाहाबाद संग्रहालय में।

भरहुत स्तुप की संरचना -भरहुत स्तुप का आकार अर्द्धगोलाकार गुम्बद के रूप में ईंटो से हुई थी।
भरहुत स्तुप में लाल रंग का चुनार पत्थर का प्रयोग किया गया है। (रवेदार पत्थर)
भरहुत स्तुप का व्यास 68 फिट है तथा इसके चारों और ऊंची मेधी बनी हुई है, इसमे ऊपर जाने के लिए सीढियां बनी हुई है।
साँची की तरह यहां पर भी तोरण द्वार बने हुए हैं इनकी ऊँचाई 22 फिट है।
वेदिका में आयताकार स्तम्भ बने हुए है जो एक दूसरे से जुड़े हुए हैं सुचियों के माध्यम से सुचियों की ऊंचाई लगभग 7 फिट 1इंच है।

भरहुत की कलाकृतियां -
बुद्ध की जन्म जन्मातर की कथाए
मानुसी बुधो से सम्बंधित दर्शय
देव समुदाय का दर्शय

जनरल कनिघम ने भरहुत का उत्खनन किया था इन्हें मुख्य तौर पर जातक कथाओं का विवरण मिला था वो निम्न प्रकार है-
40 जातक कथाओं का दर्शय
6 बुद्ध के जीवन से सम्बंधित दृश्य
लगभग 40 दर्शय देवताओं, नागराज व यक्ष-यक्षणियों की मूर्तियां मिली है। जिसमे उन मूर्तियों पर उनके नाम भी दर्शाये गए हैं।

जातक कथाओं के प्रमुख दर्शय -
हास्यपद दर्शय - यह दर्शय बन्दरो से सम्बंधित है, इस दर्शय में बंदर गाजे बाजे के साथ जा रहे हैं, तथा दूसरे दर्शय में एक मनुष्य का दांत संडासी से उखाड़ा जा रहा है उस दांत को एक हाथी खींच रहा है।
छदन्त जातक, सुजात जातक, महाजनक जातक, वेस्सान्तर जातक, आराम दुसक जातक आदि प्रमुख हैं।
स्त्रियों से सम्बंधित दर्शय - भरहुत में स्त्रियों की आकृति दो मंजिले भवन पर अंकित की गई है उनके आगे उनका नाम अंकित है। जो निम्न है - शुभद्रा, सुदर्शना, मित्रकेशी, आलमपुसा।

Note - 
भरहुत शिल्प पर बने सर्वश्रेष्ठ चित्र - जेतवन का दान,माया देवी का स्वप्न।
भरहुत स्तुप की वैदिका पर चुलाकोका और सुदसना यक्षी बनाई गई है
भरहुत की कला में हास्य व्यंग्य का पुट है।
भरहुत की कला में लोककला का सम्मिश्रण है

अमरावती स्तुप (200 ईसा.पु.)

दक्षिण भारत में आंध्रप्रदेश के गंटूर जिले में अमरावती नामक स्थान पर स्थित हैं। कृष्णा ओर गोदावरी नदियों के बीच में।
अमरावती स्तुप के अभिलेख मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं।
लेखों में अमरावती का प्राचीन नाम धान्यकटक मिलता है। ऐसा प्रतीत होता है, कि मौर्य शासक अशोक ने अन्य स्थानों के समान यहाँ भी एक स्तूप का निर्माण करवाया था।
सर्वप्रथम 1797 ई. में मैकेंजी को इस स्तूप का पता चला था। उन्होंने यहाँ से प्राप्त शिलापट्टों तथा मूर्तियों के सुंदर रेखाचित्र तैयार किये थे।
यह स्तुप हीनयान और महायान दोनों से सम्बंधित है क्यो की इसपे दोनों समुदाय से सम्बंधित कार्य देखने को मिलते है।

Q. निम्न में किस नगर का प्राचीन नाम धन्यकटक था।
  1. भरहुत
  2. कानपुर
  3. कौशाम्बी
  4. अमरावती

अमरावती से कुछ दूरी पर धरणी किट से 33 मूर्तियां प्राप्त हुई थी जिसे रॉबर्ट्सन 1830 में लंदन संग्रहालय के लिए के गए।
अमरावती की संरचना -
इसकी वेष्टिनि इकहरी बनाई गई है, इसकी लम्बाई 800 फीट है तथा इसकी ऊंचाई 13 फिट है।
स्तुप का व्यास 160 फिट है, ऊंचाई लगभग 90 से 100 फिट।
अमरावती स्तुप में मूर्तिकला के प्रमाण 3 शताब्दी में मिलते हैं।

यहां बनी मूर्तियां साँची व भरहुत से उत्कृष्ट व लयात्मक मूर्तियां है।
अमरावती स्तुप में भरहुत व साँची की तरह बुद्ध की जातक कथाओं को उकेरा गया है। तथा पहले इसी स्थान पर प्रतीक चिन्हों को उकेरा गया था।

अमरावती स्तुप पर बनी प्रमुख जातक कथाएं -
चापे जातक कथा
हंस जातक कथा
विधुर पंडित जातक कथा


अमरावती स्तुप में बने बुद्ध से सम्बंधित दृश्यों में सुजाता की खीर व अंगुली माल प्रकरण मुख्य तौर से दर्शाए गए हैं।
इस स्तुप पर जो वेदिकाए बनी हुई है वो साँची स्तुप के समान की है और इन वेदिकाओं के ऊपर व निचे आधा आधा कमल अंकित किया गया है। तथा इन वेदिकाओं को प्रस्तर के डंडों से जोड़ा गया है।
अमरावती की शैली ही इसकी सबसे बड़ी विशेषता है। यहां शिल्पकार ने जो दर्शय अंकित किये ह उसमे पूर्णत भक्ति भाव दर्शाने में सफल हुआ है।
भरहुत व साँची के समान ही अमरावती में अंकन किया गया है। पर सूक्ष्म चित्रांकन की वजह से सजीव हुए हैं।
इस स्तुप पर शरीर के अंग प्रत्यंगों का अधिक ध्यान रखा गया है तथा अमरावती मे स्त्रियों की आकृतियां त्रिमुद्रा में बनाई गई है।

Note - अमरावती में बुद्ध की मानव रूप में प्रतिमा का अंकन शुरू हो गया था।

- अमरावती में पुरुषों की आकृतियों को पेचदार पगड़ी पहने हुए दर्शाया गया है, जिसके दोनो सिरे लटके हुए हैं।
यहां पर बुद्ध के जीवन से सम्बंधित अनेकों उदासीन आकृतियां उकेरी गई है।

आनंदकुमार स्वमि के अनुसार यह मूर्तियां मथुरा की मूर्तियों की अपेक्षा सिंहल की (श्री लंका) मूर्तियों से ज्यादा समानता रखती हैं।

Q. कौनसे इतिहासकार के अनुसार अमरावती में विदेशी प्रभाव दिखाई नहीं देता।
  1. आनंदकुमार स्वामी
  2. रायकृष्णदास
  3. कनिघम
  4. कोई नहीं

Q. कौनसे इतिहासकार के अनुसार अमरावती पर ग्रीक व यूनानी प्रभाव है।
  1. हेरीघम
  2. कनिघम
  3. रायकृष्णदास
  4. ग्रिफिथ महोदय

अमरावती स्तुप पर बनाई गई प्रमुख आकृतियां -
गौतम बुद्ध के जन्म उत्सव का दर्शय
सिद्धार्थ द्वारा अड़ियल घोड़े को वस में करना
नागों की पुजा
गौतम बुद्ध की बड़ी - बड़ी आदमकद मूर्तियां
चक्रपुजा / चक्र पाणी का दर्शय

Note - साँची व भरहुत के शिल्पकारी प्रकृति प्रेमी थे, इन्होंने पेड़ और फूल पत्तियों का सर्वाधिक अंकन किया।
- अमरावती में शिल्पकारों में सर्वाधिक मानव आकृतियों का अंकन हुआ है।
इसी परम्परा का अनुसरण करते हुए मथुरा व गांधार में मानवरूपी बुद्ध मूर्तियों का निर्माण हुआ।


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